उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सीकर, राजस्थान के अपने एकदिवसीय दौरे के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व विधायक रणमल सिंह से भेंट करेंगे।
रणमलसिंह का जन्म 22 अगस्त,1923 को सीकर संभाग के निकटवर्ती ग्राम कटराथल में एक किसान परिवार में हुआ। सन् 1941 में उन्होंने वर्नाकुलर फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की और शिक्षक के तौर पर नियुक्त हुए। लगभग तीन साल अध्यापक रहने के बाद आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए अध्यापक पद से इस्तीफा देकर वे प्रजामंडल में शामिल हो गए।
आजादी के समय वे सेना में भर्ती हो गए। सन् 1962 के युद्ध में रणमल ने पुनः सेना में शामिल होकर देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी तथा अपनी धर्मपत्नी के आभूषण भी रक्षा कोष में दान कर लिए।
देश में इमर्जेंसी खत्म होने के बाद उन्होंने सीकर से विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयी हुए। इससे पहले वे ग्राम पंचायत, कटराथल के 5 बार सरपंच रह चुके थे। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के तौर पर उन्होंने हर निर्णय लोगों की भलाई और समाज के उत्थान के पक्ष में लिए।
रणमल सिंह जी को राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र में किसानों के उत्थान और समाज सुधार के पुरोधा के तौर पर जाना जाता है। शेखावटी किसान आंदोलन में रणमल सिंह जी का योदान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने गरीब किसानों को जमींदारों के चंगुल से मुक्त करने का बीड़ा उठाया और किसानों को उनका हक दिलाया। शेखावटी के कई किसान परिवार आज भी उनको अपना आदर्श मानते हैं।
सन् 1934 से ही आर्य समाज से जुड़ने के कारण रणमल सिंह जी जाति -प्रथा, छुआछूत, अशिक्षा, जड़-पूजा, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास, रूढ़ियों, पाखंडों के घोर विरोधी रहे हैं। शादी विवाह आदि में सीमा से ज्यादा खर्चे, बाल-विवाह, प्रदर्शन व दिखावा, बड़ी बारात का उन्होंने विरोश किया और समाज में शालीनता और सादगी लाने की वकालत की।
रणमल सिंह जी स्त्री शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के प्रबलसमर्थक रहे हैं। उन्होंने अपनी पुत्रियों को स्कूली शिक्षा देकर समाज में एक मिसाल स्थापित की थी। स्वयं की पुत्रियों के विवाह बिना घूँघट में करते हुए उन्होंने पर्दा-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रयास किए। स्वयं के परिवार में विवाह में दहेज न लेकर और न ही देकर उन्होंने दहेज प्रथा समाप्त करने के अथक प्रयास भी शुरू किए।
रणमल सिंह जी ने सरपंच, ग्राम प्रधान, विविध सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष और विधायक के रूप में हमेशा जन सेवा की। इन सभी पदों पर रहते हुए उन्होंने समाज सुधार और जनकल्याण को अपने जीवन का ध्येय बनाया। 100 से ज़्यादा साल की उम्र हो जाने के बाद भी रणमल सिंह जी समाज सेवा का कोई मौका नहीं छोड़ते।