रानीवाड़ा। केंद्र व राज्य सरकार के स्वामित्व योजना के तहत कागमाला ग्राम पंचायत के कागमाला, बिलड़ व चांडपुरा गांवों में ड्रोन फ्लाइंग सर्वे किया गया। इस मौके पर सरपंच महेन्द्रसिंह देवल, सहायक विकास अधिकारी मांगाराम देवासी, ग्राम विकास अधिकारी सुरेश खत्री सहित कई जने मौजूद रहे।
बता देते है कि इस योजना के तहत आबादी क्षेत्रों का डिजिटल मानचित्र तैयार करके ग्राम पंचायत को सौंपा जाएगा। स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समाज पर दूरगामी प्रभावों को देखते हुए राज्य सरकार ने योजना का क्रियान्वयन, राजस्व व पंचायत राज विभाग के संयुक्त प्रयासों से किए जाने का निर्णय लिया है।
विकास अधिकारी भगवानसिंह चांपावत ने कहा कि गांव की आबादी क्षेत्रों का संरक्षण और मानचित्र का कार्य पूरा होने पर संबंधित ग्राम पंचायत आबादी भूमि के स्वामित्व धारियों की भूमि विक्रय विलेख यानी पट्टा देगी। इस अवसर पर देशराज यादव, सुरेन्द्र मीणा, रणजीतकुमार, उपसरपंच तलकाराम, वरिष्ठ सहायक दिलीप दवे, रोजगार सहायक प्रतापसिंह देवल, पंचायत सहायक विक्रमसिंह, रमेश माहेश्वरी, मुराद खान, दिनेश सैन, दिनेश पुरोहित सहित कई ग्रामीण उपस्थित रहे। बिलड़ में जब ड्रोन फ्लाइंग सर्वे किया जा रहा था तो ग्रामीण प्लेन रूपी ड्रोन को देखने के लिए पहुंच गए।
जानाकरी दे देते है कि यह कोई सामान्य ड्रोन नहीं है। भारत का सबसे सफल ड्रोन है। इसने अब तक 84,809 गांवों का सर्वे किया है। अब आप सोचेंगे कि गांवों का सर्वे क्यों? क्योंकि इस ड्रोन का उपयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वामित्व योजना, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारतीय सेना द्वारा भी किया जा रहा है। यह ड्रोन किसी भी तरह के नक्शे बनाने और तस्वीरें लेने में उपयोग किया जा सकता है। इसका नाम है ट्रिनिटी-एफ9 है। कहा जाता है कि अकबर के समय में टोडरमल ने सबकी जमीन का नक्शा बनाने का काम शुरु हुआ था, जो फिर से अब इतने बड़े पैमाने पर शुरु हो रहा है।
किसी भी तरह का नक्शा बनाने या तस्वीर लेने में करता है मदद
ट्रिनिटी-एफ9 ड्रोन्स को बनाने वाली कंपनी रोटर के प्रमुख साजिद मुख्तार का कहना है कि यह ड्रोन छह तरह की तस्वीरें लेने में सक्षम है। यह निर्भर करता है कि उसपर किस तरह का कैमरा लगाया गया हैं। 2021 में शामिल होने आए साजिद ने कहा कि जियोस्पेशियल नीति को बढ़ावा देकर प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का एक बहुत बड़ा रास्ता खोल दिया है। पिछले 70 सालों में इस स्तर का काम नहीं हुआ था। अब लोग कामों में पारदर्शिता देख रहे हैं। पहले हमारे देश के नक्शे विदेशी कंपनियां बनाती थीं, अब ऐसा नहीं होता। अब हमारी कंपनियों जैसे लोग देश की अलग-अलग संस्थाओं के साथ मिलकर नक्शे बना रहे हैं।
जियोस्पेशियल इंडस्ट्री में पिछले कुछ सालों में जितना काम हुआ, उतना 70 सालों में नहीं
साजिद मुख्तार ने कहा कि जियोस्पेशियल नीतियों के आने से अब देसी कंपनी ही नक्शा बनाएगी, ड्रोन चलाएगी देसी कंपनी, डेटा स्टोरेंज देसी कंपनी के पास, प्रोसेसिंग देसी कंपनी करेगी। डेवलपमेंट का काम देसी कंपनी करेगी तो इससे रोजगार बढ़ेगा। इस समय देश में 1000 के से ज्यादा जियोस्पेशियल कंपनियां काम कर रही हैं, जो कि रजिस्टर्ड या जानी-पहचानी हैं। कई तो और भी हैं, जिनके बारे में लोगों को पता भी नहीं होगा। इस समय सरकार को चाहिए कि वो फंडिंग करे। अगर सरकार इस समय 4-5 हजार करोड़ रुपये का निवेश इस क्षेत्र में करती है तो अगले 4-5 साल में यह उद्योग 1 लाख करोड़ से ज्यादा दे सकता है।
टिशू पेपर पर बना था इस ड्रोन का पहना डिजाइनः साजिद
साजिद वापस जर्मनी गए. उन्होंने वहां अपनी कंपनी डाली। साल 2015 में ड्रोन्स की दुनिया में आए। क्वाडकॉप्टर्स बनाया लेकिन सफलता नहीं मिली। काफी ज्यादा नुकसान हो गया। फिर जिस ड्रोन से आज देश की सबसे बड़ी स्वामित्व योजना की शुरुआत की गई है, उस ड्रोन की डिजाइन एक टिश्यू पेपर पर बनाया गया था। उसका डिजाइन दुनिया के बेहतरीन ड्रोन डिजाइनर डा. फ्लोरिएंस ने किया था। इस ड्रोन का उपयोग 69 देश कर रहे हैं। इसका उपयोग मगरमच्छों की गणना, उनके गर्भ आदि की जानकारी जमा करने में उपयोग हो रहा है। यह ड्रोन जंगल का नक्शा बनाने में मदद कर रहा है।