मारवाड में रंगों का फेस्टिवल होली की धूम है। होली आते ही दिमाग में वृंदावन या मथुरा में खेली जाने वाली होली दिमाग में घूमने लगती है, लेकिन इस गैर में जालोर जिले कस भीनमाल भी कम नही है, देशभर में होली के दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है तो वहीं भीनमाल में आज के दिन ऐतिहासिक घोटा गैर का आयोजन हुआ। रियासतकाल के शासन काल से वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का आज के समय में भी भीनमाल के जागीरदार रहे रावों की सरपरस्ती में 36 कौम के शहरवासी परंपरागत रूप से पालन कर रहे हैं।
मान्यताओं के अनुसार सैकड़ों वर्ष पुराने इस ढोल को वर्षों पहले भीनमाल पर शासन करने वालों ने मीर समाज को सौंपा था। इस ढोल को सिर्फ होली पर्व पर ही बाहर निकाला जाता है। बाकी के दिनों में इस ढोल को बाहर नहीं निकाला जाता है और होली के दूसरे दिन शहरवासियों को बाबैया ढोल का ही इंतजार रहता है जैसे ही ढोल गैर में पहुंचता है तो लोग उत्साह, जोश से नृत्य करने लगते हैं। दरअसल यह घोटा गैर एक खास तरह का नृत्य है, जिसे करने के लिए युवाओं को विशेष कौशल की जरूरत होती है।
बता दें कि बड़ा सा लठ या पेड़ की मोटी टहनी को हाथ में उठा कर बिना रुके जो नाच सके वो ही इस गैर नृत्य में टिक सकता है। वहीं इस गैर की खासियत यह है कि बाबैया ढोल जैसे ही बजने लगता है तो युवाओं के कदम गैर में खेलने के लिए अपने आप ही थिरकने लगते हैं। इस आयोजन के दौरान पुलिस प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है।
घोटा गैर में बाबैया ढोल का होता हैं विशेष महत्व
इस ढोल की आवाज सुनकर लोगों के पांव अपने आप नृत्य के लिए उठ जाते हैं। इसकी आवाज एक विशेष रूप में होती है जो दूर-दूर तक सुनाई देती है। पहले बाबैया ढोल की आवाज कई किलोमीटर तक भी सुनाई देती थी। जब यह बजता था तो पूरा शहर एकत्रित हो जाता था, यह ढोल वर्ष में एक बार ही बार निकलता है। इस घोटा गैर के हुड़दंग का पूरा खेल इसी ढोल पर आधारित है। इसी ढोल की धुन पर सभी अपनी मस्ती में मस्त होकर घोटा लेकर गैर नाचते हैं। वह पहले शहर के कई चोहटों से गैर नाचते हुए घंटा घर आते हैं और घंटा घर के चारों तरफ चक्कर लगाते हैं।
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यहां से होती है घोटा गैर की शुरुआत
पुराने समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार आज भी घोटा गैर सर्वप्रथम चण्डीनाथ महादेव मंदिर से शुरू हो कर खारी रोड, देतरियों का चौहटा, गणेश चौक होते हुए बड़ा चौहटा पहुंचती है, सालों से यही क्रम चलता था ओर आज भी यही क्रम चला आ रहा है, चंडीनाथ महादेव मंदिर से जैसे ही ढोल निकलता है तो खारी रोड पर भारी संख्या में लोगों की भीड़ जुट जाती है और शहर के घंटाघर याने बड़े चौहटे पर आते-आते यह गैर नृत्य बड़ा रूप ले लेती है। जिसके चलते प्रदेशभर में भीनमाल की यह घोटा गैर आज भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
अमरसिंह और हकसिंह राव बताते हैं कि उनके दादा परदादा के ज़माने से घोटा गैर का आयोजन होता आ रहा है। राव समाज सहित 36 कौम के लोग अपना-अपना समूह बनाकर इसका आयोजन करते थे। जब घोटा गैर का आयोजन होता है, तब बड़े चौहटे के आसपास खड़े रहने तक की जगह नहीं बचती, पहले बाबैया ढोल की आवाज दूर तक सुनकर लोग घोटा गैर में सम्मिलित होने के लिए पहुंच जाते हैं।