खेतों में आंसू, दिलों में आग 7 वर्ष बीत गए किसानों की समस्या जस की तस
रानीवाडा। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कुदरती प्रकोप को ईश्वर कुपा माना जाता है। राम रूढने के बाद राज सार संभाल लेता है। परन्तु 2015 और 2017 में बाढ में हजारों बीघा कृषि जमीन कट कर खराब हो गई। उनको बचाने के लिए सरकार की ओर से कोई प्रयास नही होने से किसानों में सरकार के प्रति रोष देखा जा रहा है।
हम बात कर रहे है सांवलावास गांव की, 2015 और 2017 की बाढ में सांवलावास के खेतों में सागी नदी ने तांडव मचाया था। बाढ बचाव कार्य में सरकार फैल रही है। लिहाजा, सांवलावास गांव को अपना वजूद बचाने के लिए राम के भरोसे रहना पड रहा है।
युवा एडवोकेट ललित राजपुरोहित ने बताया कि राजस्थान के इस मरुस्थल में बहुत समय पहले से कोई भी गांव नदी के किनारे बस जाने व आबाद रहने की परंपरा रही है, इसी कडी में हम सांवलावास गांव के किसानों की देवीयकृत प्रकृति के दुख सन 2015 व 2017 में नदी में अतिवृष्टि से भयंकर बाढ़ के रूप में ऐसा आया कि उन किसानों के खेत व घर पानी में बह गए, अब जो इस बाढ़ के आने की पूर्व या जहाँ खेत-खलिहान कल्याण आबाद थे, वह अब बंजर भूमि का रूप ले लिया है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 की बाढ़ के बाद लगातार प्रत्येक वर्ष नदी के पानी से बसे हुए खेतों का नुकसान हो रहा है जबकि प्रशासन गहरी नींद में हैं, नदी का क्षेत्रफल वर्ष दर वर्ष बढ़ रहा है लेकिन किसानों के खेत व उनमें बची ढाणियों को वह काश्तकार की आँखों के सामने जमीदोंज हो रहे किसान खून के आँसू टपका रहा हैं जिनके इन खेतों के सिवाय कोई आशियाना नहीं हैं, यदि सरकार सही समय पर अब भी बाढ़ बचाव का कार्य सरकारी विभाग जल संसाधन विभाग से नहीं करवाती हैं। तब वह नदी के बहाव की चपेट में पूरी आबादी क्षेत्र भी आ जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, अर्थात अब यदि समय पर नहीं चेते तो गांव साँवलावास सिर्फ कागजों में होगा व धरातल की स्थिति में भारी परिवर्तन हो सकता है।
आज राज्य व केंद्र की सरकारे व उनका सिस्टम किसानों को समृद्ध बनाने हेतु कई योजना बनाता हैं, खेती किसानी की खूब बातें होती है,जो वास्तविक रूप से कभी सही मायने में धरातल पर न तो उतरती हैं व न ही बदलाव दिखता हैं, गांव साँवलावास के किसानों की जो मुख्य समस्या है जो अपने अस्तित्व को बचाने हेतु है मगर भ्रष्ट तंत्र द्वारा इतने वर्षों के बाद भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
प्रत्येक 5 वर्ष में सरकारे बनती हैं चुनाव में नेता वादा करते हैं। अधिकारी पूरे वर्ष इस क्षेत्र में योजना व प्रपोजल बनाते हैं, मगर यह देश के अन्नदाताओं का दुर्भाग्य है कि इतनी बडी समस्या को भी सरकार नजरअंदाज करती हैं जो यह सिर्फ नाकामी है इसे दूर करने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है।