भीनमाल | ऋषि पंचमी के शुभ अवसर पर उपनिषदों के रचनाकार ऋषिराज महर्षि जाबालि जी की जन्म जयंती पर संस्कृति शोध परिषद्, जालोर के तत्वाधान में जालौर के आराध्य ऋषिराज जाबालि के मुख्य आवरण चित्र वाली व जालौर जिले के ऐतिहासिक सांस्कृतिक शक्तिपीठों, द्वादश ज्योतिर्लिंग, जालौर के गौरव, धरोहरों की चित्रमयी जानकारी वाली जालौर डायरी का विमोचन अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश, भीनमाल श्रीमान गोपाल सैनी बार एसोसिएशन, भीनमाल अध्यक्ष मदन सिंह राव, संस्कृति शोध परिषद, जालौर के अध्यक्ष अशोक सिंह ओपावत के कर कमलों द्वारा न्यायालय परिसर में स्थित मामाजी मंदिर प्रांगण में किया गया। इस दौरान एडवोकेट रघुनाथ सियाग, शैलेंद्र सिंह राठौड़, नगरपालिका के विधि सलाहकार शिव नारायण विश्नोई, भंवरपाल सिंह रोहिन, रामनिवास भादू, सत्यवान सिंह राजपुरोहित, जोधाराम देवासी, अभय सिंह राव, हेमाराम देवासी, नारायण लाल सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
आज ऋषि पंचमी है। जिन ऋषि के नाम पर जालौर का नाम है उन महर्षि जाबालि की जन्म जयंती है जालोर को प्राचीन काल में जाबालीपुर कहते थे। महर्षि जाबालि की तपस्थली होने के कारण जालौर को यह गौरवशाली नाम प्राप्त हुआ अनेक शिलालेखों में, अभिलेखों में और प्राचीन संस्कृत और प्राकृत साहित्य में इस बात का उल्लेख मिलता है।
महर्षि जाबालि जी के बारे में जानेंगे तो आप अचंभित रह जाएंगे कि प्राचीन काल के कितने महान ऋषि की तपस्थली जालौर रहा है।
महर्षि जाबालि एकमात्र ऋषि हैं जिनके नाम पर दो शहर बसे हैं। जालौर और मध्यप्रदेश का जबलपुर ऐसे और कोई भी ऋषि नहीं जिनके नाम पर शहर बसे हो। महर्षि जाबालि उपनिषदों के रचनाकार थे। यह एकमात्र ऋषि हैं जिनके नाम पर 6 उपनिषद हैं। साधना के आधार पर अनेक ऋषियों को राजर्षि, ब्रह्म ऋषि देव ऋषि के नाम से संबोधित करते हैं। महर्षि जाबालि जी एकमात्र ऋषि हैं जिनमें ऋषिराज कहा गया। मानव के जीवन को 100 वर्ष का मान कर उसमें ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम ,वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम में विभाजन का पहला उल्लेख जाबालोपनिषद में मिलता है।
महर्षि जाबाली जी भगवान श्री राम के समकालीन थे। महाराजा दशरथ के सलाहकार ऋषियों में महर्षि जाबालिजी प्रमुख ऋषि थे। गुरुदेव वशिष्ठ जी की अनुपस्थिति में महर्षि जाबालि जी ही भगवान राम के मुख्य सलाहकार होते थे। यह हमने रामायण में देखा है।भरत जी जब भगवान श्री राम को मनाने के लिए वन में गए उस समय महर्षि जाबालि जी विशेष रूप से उनके साथ थे। वाल्मीकि रामायण में इसका विस्तार से उल्लेख मिलता है। ऐसे अद्भुत, ज्ञानवान, प्रज्ञावान ऋषि ने अपनी साधना के लिए, तपस्या के लिए जालौर का चयन किया और उनके तप का इतना प्रभाव रहा कि उनके नाम पर जालौर का नाम जाबालिपुरम पड़ गया।